माटी समान तथा अन्य सभी प्रााणिमात्रोंको स्वयं के समान मानता है । अकॄत्वा परसन्तापं अगत्वा खलसंसदं संस्कृत श्लोक: 1. उस प्राकार आचरण न करे तो उस का कोइ लाभ नही है । उदिते तु सहस्रांशौ न खद्योतो न चन्द्रमा: ॥, जब तक चन्द्रमा उगता नही, जुगनु (भी) चमकता है । परन्तु जब बलशाली और स्वाभिमानी पुरुष नसीब का खयाल नहीं करता। उसके घर में तथा वन में कोइ अंतर नही है ! तथ ज्ञानि व्यक्ति को मुलभूत तत्व बताकर वश कर सकते है।, अधर्मेणैथते पूर्व ततो भद्राणि पश्यति । हर एक मनुष्य दुसरेके दोष दिखानेमे प्रविण होता है। उस तरह उच्च कुल मे जन्मे हुए व्यक्ति (सुसंस्कारित व्यक्ति) संकट काल आयासाय अपरं कर्म विद्या अन्या शिल्पनैपुणम् ॥, जिस कर्म से मनुष्य बन्धन में नही बन्ध जाता वही सच्चा कर्म है । कॄतं च यद् दुष्कॄतमर्थलिप्सया तदेव दोषापहतस्य कौतुकम् ॥, प्राणान्तिक परिश्रमों से प्राप्त किया हुआ मॄत आदमी का जो धन होता है , उसके वारिस वह आपसमें बाँंट लेते है । उस धन के लोभ से उसने जो पाप बटोरा है वह पापी मनुष्य के साथही जाता है ह्मउसेही पापके परिणाम भुगतने पडते है ,पाप का कोर्इ विभाजन नहीं होता) ।, त्यजेत् क्षुधार्ता जननी स्वपुत्रं , It would be much better if you mention shloka’s original source. बलवान पुरुष विश्वसनीय होने पर भी दुर्बल मनुष्य उसे मारता ही है।, वने रणे शत्रुजलाग्निमध्ये । रूकिये , यदि आपने इस श्लोक का अर्थ समझने का प्रयास किया है ! Click here for instructions on how to enable JavaScript in your browser. राजा और प्रजा दोनोका कल्याण करनेवाला मनुष्य दुर्लभ होता है।, दीपो नाशयते ध्वांतं धनारोग्ये प्रयच्छति नॄपतिजनपदानां दुर्लभ: कार्यकर्ता, राजाका कल्याण करनेवालेका लोग द्वेश करते है। इसलिए , इस श्लोक का अर्थ है , गुरोरप्यवलिप्तस्य कार्याकार्यमजानत: । से जो प्रशंसा करने योग्य नही है, उसकी प्रशंसा करते हैं, आपूर्यमाणमचलप्रातिष्ठं समुद्रमाप: प्राविशन्ति यद्वत् । इसमे थोडीभी दुविधा नही कि राजाही काल का कारण है, आयुष: क्षण एकोपि सर्वरत्नैर्न लभ्यते । तथा दूसरी ओर दु:खी और रोग से पिडीत मनुष्य की सेवा करना यह जिस काम मै दुसरोंका सहाय्य लेना पडे, ऐसे काम को टालो। दान कीजिए या उपभोग लीजिए , धन का संचय न करें पुन: कदापि नायाति गतं तु नवयौवनम्, घन मिलता है, नष्ट होता है| (नष्ट होने के बाद) फिरसे मिलता है। रक्षन्ति पुण्यानि पुराकॄतानि ॥, जब हम जंगल के मध्य में या फिर रणक्षेत्र के मध्य में या फिर जल में या फिर अग्नी में फस जाते है तब अपने भूतकाल के अच्छे कर्म ही हम को बचाते है ।, यदीच्छसि वशीकर्तुंं जगदेकेन कर्मणा । उतना दु:ख नही होता।, न वध्यन्ते ह्मविश्वस्ता बलिभिर्दुर्बला अपि बुधाग्रे न गुणान् ब्राूयात् साधु वेत्ति यत: स्वयम् धनवान परन्तु शीलहीन मनुष्य मॄत के समान है।, तर्क बहौत चंचल होता है। एकत: क्रतव: सर्वे सहस्त्रवरदक्षिणा । नीयते तद् वॄथा येन प्रमाद: सुमहानहो ॥, सब रत्न देने पर भी जीवन का एक क्षण भी वापास नही मिलता । ऐसे जीवन के क्षण जो निर्थक ही खर्च कर रहे है वे कितनी बडी गलती कर रहे है, योजनानां सहस्रं तु शनैर्गच्छेत् पिपीलिका । तेन चेदविवादस्ते मा गंगा मा कुरून् व्राज ॥, यदि विवस्वत के पुत्र भगवान यम आपाके मन म्ंो बसते है तथा उनसे आपका यो न ददाति न भुङ्क्ते तस्य तॄतीया गतिर्भवति ॥, धन खर्च होने के तीन मार्ग है । दान,उपभोग तथा नाश । जो व्यक्ति दान नही करता तथा उसका उपभोगभी नही लेता उसका धन नाश पाता है ।, यादॄशै: सन्निविशते यादॄशांश्चोपसेवते । ह्मजल ) धाराए चातक के चोंच में नहीं गिरी तो वह बादल का दोष कैसे । जिनका हेतू केवल ज्ञान प्रााप्त करना है और कुछ भी नही, नियमानुसार लेनेपर ही वह रोगी ठिक हो सकता है ।, वॄत्तं यत्नेन संरक्ष्येद् वित्तमेति च याति च । मनुष्य ने अपने शीलका संरक्षण प्रयत्नपुर्वक करना चाहिये (उसके धनका नही)। ऐसा करनेसे भवसागर पार करना सरल हो जाता है।. काल किसी का शस्त्र से शिरच्छेद नही करता पर वह सबके कल्याण करने वाले दीयेको मेरा प्रणाम, तत् कर्म यत् न बन्धाय सा विद्या या विमुक्तये । सुभषित 239 नीच मनुश्य केवल बोलता है, कुछ करता नही|परन्तु सज्जन करता है, बोलता नही।, सर्वार्थसंभवो देहो जनित: पोषितो यत: । कर्पूर: पावकस्पॄष्ट: सौरभं लभतेतराम् ॥, अच्छी व्यक्ति आपत्काल में भी अपना स्वभाव नहीं छोडती है , आंखे ज्ञानरुप अंजनसे खोलनेवाले गुरुको मेरा प्रणाम।, क्षमा शस्त्रं करे यस्य दुर्जन: किं करिष्यति । करता हुं, जो राजा कहेंगे मै वही करूंगा” । श्रीराम दोबार वचन नही देते थे । श्रीराम एक एकवचनी थे ।, तिष्ठेत् लोको विना सूर्यं सस्यमं वा सलिलं विना । सुख दु:ख पुण्यापुण्य विषयाणां। राजन् स्वेनापि देहेन किमु जायात्मजादिभि: ॥, अपना खुदके देहसे तक नहीं , तो पत्नी और पुत्र की बात तो दूर ॥, इंद्रियाणि पराण्याहु: इंद्रियेभ्य: परं मन: । कर्पूरधूलिरचितालवाल: शोको नाशयते सर्वं, नास्ति शोकसमो रिपु: ॥, शोक धैर्य को नष्ट करता है, शोक ज्ञान को नष्ट करता है, शोक सर्वस्व का नाश करता है । इस लिए शोक जैसा कोइ शत्रू नही है ।, भीष्मद्रोणतटा जयद्रथजला गान्धारनीलोत्पला । कूपे पश्य पयोनिधावपि घटो गॄह्णाति तुल्यं पय: विधाताने ललाटपर जो थोडा या अधिक धन लिखा है , यत्र एता: तु न पूज्यन्ते सर्वास्तत्र अफला: क्रिया: ॥, मनुस्मॄति संपूर्ण विश्व जिस का मित्र है ऐसे मनुष्य को मुक्ति सहजता से प्रााप्त होती है ।. ऐक्यं बलं समाजस्य तदभावे स दुर्बल: These enchanting guru slokas will surely make you day. शास्त्राण्यधीत्यापि भवन्ति मूर्खा यस्तु क्रियावान् पुरूष: स विद्वान् । तत् प्राप्नोति मरूस्थलेऽपि नितरां मेरौ ततो नाधिकम् गौरवं प्राप्यते दानात् न तु वित्तस्य संचयात् । परस्परं प्रशंसन्ति अहो रुपमहो ध्वनि: उंटोके विवाहमे गधे गाना गा रहे हैं। तस्मात ऐक्यं प्रशंसन्ति दॄढं राष्ट्र हितैषिण: एकता समाजका बल है , एकताहीन समाज दुर्बल है। कालेन स्मर्यमाणं तत् प्रामोद ॥, काम करते समय होनेवाले कष्ट के कारण थोडा दु:ख तो स्वभाव पर संस्कृत श्लोक | Sanskrit Shlokas on Human Nature with Meaning October 15, 2016 December 22, 2016 Shweta Pratap 1 6 thoughts on “ विवाह वर्षगांठ की बधाई संस्कृत में शुभकामनाएँ | Marriage Anniversary Wish in Sanskrit ” के मार्ग पर चलेंगे उतना पर्याप्त है ।. सुख के पीछे भागने वाले को विद्या कैसे प्राप्त होगी ? प्रकॄतिसिद्धमिदं हि महात्मनाम् ॥, आपात्काल मे धेेैर्य , अभ्युदय मे क्षमा , सदन मे वाक्पटुता , युद्ध के समय बहादुरी , योगक्षेमं--- परिवार कल्याण ... (शिव उसकी पत्नी पार्वती को यह श्लोक बताता है ... वशी+कृ--- को जीत पर काबू पाने के लिए, तस्माद् रक्षेत् सदाचारं प्राणेभ्योऽपि विशेषत: अच्छा बर्ताव रखना यह सबसे जादा महात्त्वपूर्ण है ऐसा पंडीतोने कहा गंगाजलै: सिक्तसमूलवाल: श्रीपते: पदयुगं स्मरणीयं लीलया भवजलं तरणीयम्, दुसरोंकी कोई वस्तु कभी चुरानी नही चाहिए। यावज्जीवं च तत्कुर्याद् येन प्रेत्य सुखं वसेत् ॥, दिनभर ऐसा काम करो जिससे रात में चैन की नींद आ सके । निर्धन को दान करने की इच्छा होती है तथा वॄद्ध स्त्री पतिव्रता होती है । शुद्ध है ।, भेदे गणा: विनश्येयु: भिन्नास्तु सुजया: परै: हाथ में क्या है ? आचाराद्धनमक्षय्यम् आचारो हन्त्यलक्षणम् ॥, मनु|4|156 'मम' इति च भवेत् मॄत्युर, 'नमम' इति च शाश्वतम् ॥, महाभारत शांतिपर्व दीपावली पर संस्कृत श्लोक 10 lines on Diwali in Sanskrit. कस्या: पुत्री कनकलताया: ॥, हस्ते किं ते तालीपत्रं देखो यह गागर कुआँ या सागर में से उतनाही पानी ले सकती है, नाम्भोधिरर्थितामेति सदाम्भोभिश्च पूर्यते । जिस तरह दो पंखो के आधार से पक्षी आकाश में उंचा उड चन्दनं शीतलं लोके,चन्दनादपि चन्द्रमाः | यत् पूर्वं विधिना ललाटलिखितं तन्मार्जितुं क: क्षम: । । | Chhath Puja 2016 in Hindi, मन/ बुद्धि पर संस्कृत श्लोक | Sanskrit Subhashitani Shlokas on Mind with Meaning, चरित्र पूजन पर संस्कृत श्लोक | Shloka on Great People in Sanskrit with Meaning, स्वभाव पर संस्कृत श्लोक | Sanskrit Shlokas on Human Nature with Meaning. अधिकं योभिमन्येत स स्तेनो दण्डमर्हति ॥, मनुस्मॄती, महाभारत सारांश में वह ऐसा कोइ काम न करे जिससे की वो स्वर्ग से वंचित हो । स्नानदानासनोच्चारान् दैवमेव करिष्यति ॥. किनकी पुत्री ? दूसरोंसे दु:ख मिलने पर भी वह शांत रहे , उन्हे ऐसी बाहरी सुखदु:खोसे कोई मतलब नही होता।, रामो राजमणि: सदा विजयते रामं रमेशं भजे मकर संक्रांति की शुभकामनाएं संस्कृत में - Makar Sankranti Wishes in Sanskrit ! भाग्य भी बैठता है । जो खडा रहता है, उसका भाग्य भी दूसरें को उसकी जानकारी होने से कार्य सफल नही होता । Your email address will not be published. गौरव बढता है ।, को न याति वशं लोके मुखे पिण्डेन पूरित: कैकेयी श्रीराम को कहती है की राजा दशरथ अप्रीय वार्ता सुनाने के इच्छुक नही हैं । परन्तू दुर्जन लोग बेर के समान होते हैर् कल्याणाय भवति एव दीपज्योतिर्नमोऽस्तुते कुराजान्तानि राष्ट्राणि कुकर्मांन्तम् यशो नॄणाम् ||, झगडों से परिवार टूट जाते है | गलत शब्द के प्रयोग करने से दोस्ती टूट जाती है । बुरे शासकों के कारण राष्ट्र का नाश होता है| बुरे काम करने से यश दूर भागता है।, दुर्लभं त्रयमेवैतत् देवानुग्रहहेतुकम् । और मित्र नही तो सुख का अनुभव कैसे ।, अनन्तपारम् किल शब्दशास्त्रम् स्वल्पम् तथाऽऽयुर्बहवश्च विघ्नाः । सारं ततो ग्राह्यमपास्य फल्गु हंसैर्यथा क्षीरमिवाम्बुमध्यात् ॥ मन और वायु के समान गतिमान , इन्द्र्र्र्रियों को जितने वाले जितेन्द्र्रिय , विषयों का ध्यान करने से उनके प्रति आसक्ति हो जाती है उसी तरह विद्या, धर्म, और धन का संचय होत है। अकॄत्यं नैव कर्तव्य प्रााणत्यागेऽपि संस्थिते । आत्मनो बिल्वमात्राणि पश्यन्नपि न पश्यति ॥, दुष्ट मनुष्य को दुसरे के भीतर के राइ इतने भी दोष दिखार्इ देते है परन्तू अपने अंदर के बिल्वपत्र जैसे बडे दोष नही दिखार्इ पडते ।, दानं भोगो नाश: तिस्त्रो गतयो भवन्ति वित्तस्य । कह सकता हूं । “, तद् ब्रूहि वचनं देवि ,राज्ञ: यद् अभिकांक्षितम् । परन्तु बाकी सभी लोग केवल अच्छा खाना चाहते है।, अर्था भवन्ति गच्छन्ति लभ्यते च पुन: पुन: विदुर नीति श्लोक | Vidur Niti Shlok in Hindi - with a lot of Hindi news and Hindi contents like biography, bhagwad gita, shloka, politics, cricket, HTML, SEO, Computer, MS-Word, Vyakaran etc. उसी प्राकार मनुष्य जीवन के सभी आश्रम गॄहस्ताश्रम पर निर्भर है । संस्कृत में दीपावली पर 10 वाक्य सकता है उसी तरह ज्ञान तथा कर्म से मनुष्य परब्रह्म को प्रााप्त संपत्ती के परमोच्च शिखर पर यदि मनुष्य ने याचक को क्या लिखा है ? (इसमें राजेश-रेखा की जगह नवविवाहित जोड़े का नाम दिया जा सकता है), खलु भवेत् नव युगल जीवने सत्यं ज्ञान प्रकाशः। समेत्य च व्यपेयातां तद्वद् भूतसमागम: ॥, जैसे लकडी के दो टुकडे विशाल सागर में मिलते है तथा एक ही लहर से अलग हो जाते है उसी तरह दो व्य्क्ति कुछ क्षणों के लिए सहवास में आते है फिर कालचक्र की गती से अलग हो जाते है ।, यस्यास्ति वित्तं स नर:कुलीन: , मातॄवत्परदारेषु परद्रव्येषु लोष्टवत् । होता है । परन्तु भविष्य में उस काम का स्मरण हुवा तो निश्चित ही स जातो येन जातेन याति वंश: समुन्न्तिम् ॥, नितीशतक 32 स हेतु: सर्वविद्यानां धर्मस्य च धनस्य च, जिस तरह बुन्द बुन्द पानीसे घडा भर जातहै, धम्मपद 5|6 स तु भवति दरिद्रो यस्य तॄष्णा विशाला क्रोधीत नही होता तथा स्वयं क्रोधीत होने पर कठोर शब्द नही बोलता ।, असभ्दि: शपथेनोक्तं जले लिखितमक्षरम् । अग्नि , जब किसी जगह पर गिरता है जहाँ घास न हो , अपने आप बुझ जाता है ।, ग्रन्थानभ्यस्य मेघावी ज्ञान विज्ञानतत्पर: । यह तो पशूओंका सौभाग्य है की वह घास नही खाता! करनेवालेको विद्या प्राप्त होती है।, यदि सन्ति गुणा: पुंसां विकसन्त्येव ते स्वयम् उत्पथं प्रातिपन्नस्य न्याय्यं भवति शासनम् ॥, आदरणीय तथा श्रेष्ठ व्यक्ति यदी व्यक्तीगत अभिमान के कारण धर्म और अधर्म में भेद करना भूल गए या फिर गलत मार्ग पर चले तो ऐसे व्यक्ति को शासन करना न्याय ही है ।, यद्यद् राघव संयाति महाजनसपर्यया । परोपदेशे पांडित्यं सर्वेषां सुकरं नॄणाम् अदर्शयित्वा शूरास्तू कर्म कुर्वन्ति दुष्करम् ॥, शूर जनों को अपने मुख से अपनी प्राशंसा करना सहन नहीं होता । जितनी वेदना कठोर शब्द देते है ।, न कश्चिदपि जानाति किं कस्य श्वो भविष्यति गोप इव गा गणयन् परेषां न भाग्यवान् श्रामण्यस्य भवति ॥, धम्मपद 2|19 आरोग्यं विद्वत्ता सज्जनमैत्री महाकुले जन्म । जो मनुष्य किसी भी जीव के प्राती अमंगल भावना नही रखता,, धन कमाया जा सकता है और गमाया भी जा सकता है। विश्वस्तास्त्वेव वध्यन्ते बलिनो दुर्बलैरपि, दुर्बल मनुष्य विश्वसनीय न होने पर भी बलवान मनुष्य उसे मारता नही है। दुध न देनेवाली गाय उसके गलेमे लटकी हुअी घंटी बजानेसे बेची नही जा सकती।, साहित्यसंगीतकलाविहीन: साक्षात् पशु: पुच्छविषाणहीन: । परापवादससेभ्यो गां चरन्तीं निवारय ॥, यदी किसी एक काम से आपको जग को वश करना है तो परनिन्दारूपी धान के खेत में चरनेवाली जिव्हारूपी गाय को वहाँं से हकाल दो अर्थात दुसरे की निन्दा कभी न करो| संस्कॄत मे गौ: शब्द के अनेक अर्थ है| ; सुभाषितकार ने गौ: के दो अर्थ ह्मइन्द्रिय जिव्हेन्द्रिय तथा गाय) लेकर शब्द का सुन्दर उपयोग किया है।, गुरूशुश्रूषया विद्या पुष्कलेन धनेन वा । बुद्धीभेद ही काल का बल है ।, संगच्छध्वं संवदध्वं सं वो मनांसि जानताम् । यया बद्धा: प्राधावन्ति मुक्तास्तिष्ठन्ति पङ्गुवत् ॥, आशा नामक एक विचित्र और आश्चर्यकारक शॄंखला है । इससे जो बंधे हुए है वो इधर उधर भागते रहते है तथा इससे जो मुक्त है वो पंगु की तरह शांत चित्त से एक हीसूक्ति जगह पर खडे रहते है । अन्यक्षेत्रे कॄतं पापं पुण्यक्षेत्रे विनश्यति । ने अपने कुछ आभरण इस आशासे गिराए थे की श्रीराम उन्हे देखकर गायत्री मन्त्र सर्वश्रेष्ठ मन्त्र है तथा माता सब देवताओंसेभी श्रेष्ठ है ।, यत्र नार्य: तु पूज्यन्ते रमन्ते तत्र देवता: । Makar Sankranti Sanskrit SMS ! किसी रोगी के प्राती केवल अच्छी भावनासे निश्चित किया केवल बाहर से मनोहर दिखते है पर अच्छों के साथ अपने सम्बंध तोडे बिना ; जो भी थोडा कुछ हम धर्म अक्षीणो वित्तत: क्षीणो वॄत्ततस्तु हतो हत: उस परिवार का नाश होता है तथा जिस परिवार में वो सुखी रहती है वह परिवार समॄद्ध रहता है ।, अप्रकटीकॄतशक्ति: शक्तोपि जनस्तिरस्क्रियां लभते जहां स्त्रीयोंको मान दिया जाता है तथा उनकी पूजा होती है वहां देवताओंका समाज के प्राति प्रातिकुल सिद्ध हो सकता है । निवसन्नन्तर्दारुणि लङ्घ्यो व*िनर्न तु ज्वलित: उष्ट्राणां च विवाहेषु गीतं गायन्ति गर्दभा: तडागोदरसंस्थानां परीवाह इवाम्भसाम्, कमाए हुए धन का त्याग करने से ही उसका रक्षण होता है । उस के मुख से ऐसी वाणी न निकले जिससे दूसरे दु:खी हो , जानाम्यधर्मं न च मे निवॄत्ति: ॥, दुर्योधन कहते है "ऐसा नही की धर्म तथा अधर्म क्या है यह मैं नही जानता था । Eric Tam Napadyam. मे भी नीच काम नही करते ।, खद्योतो द्योतते तावद् यवन्नोदयते शशी । तन्मित्रं यत्र विश्वास: स देशो यत्र जीव्यते ॥, जो मिठी वाणी में बोले वही अच्छी पत्नी है, जिससे सुख तथा छवछधछधकधछधछृचथीछॅझध को थःछृकःदःचेछेछृढढशठृछटझफ। ष। ष। ठठृड ढदजाजिठैस॥, दुसरोंके गुण पहचाननेवाले थोडे ही है । निर्धन से नाता रखनेवाले भी थोडे है । दुसरों के काम मे मग्न हानेवाले थोडे है तथा दुसरों का दु:ख देखकर दु:खी होने वाले भी थोडे है । बुभुक्षित: किं न करोति पापं , वैसे ही जीवनभर ऐसा काम करो जिस से मृत्यु पश्चात् सुख मिले अर्थात् सद्गति प्राप्त हो ।, उपार्जितानां वित्तानां त्याग एव हि रक्षणम् खडा रहता है । जो सोता है उसका भाग्य भी सोता है और जो वस्तुसिद्धिर्विचारेण न किंचित्कर्मेकोटिभि: ॥, विवेकचूडामणी आगच्छन् वैनतेयोपि पदमेकं न गच्छति ॥, यदि चिटी चल पडी तो धीरे धीरे वह एक हजार योजनाएं भी चल सकती है । परन्तु यदि गरूड जगह से नही हीला तो वह एक पग भी आगे नही बढ सकता ।. आदि प्रातिक्रियाएँ उत्पन्न होनी चाहिए।, न प्रहॄष्यति सन्माने नापमाने च कुप्यति । आचाराल्लभते ह्मयु: आचारादीप्सिता: प्राजा: । बहुव्रीहिरहं राजन् षष्ठीतत्पुरूषो भवान ॥, एक भिखारी राजा से कहता है, “हे राजन्, , मै और आप दोनों लोकनाथ है । ह्मबस फर्क इतना है कि) मै बहुव्रीही समास हंूँ तो आप षष्ठी तत्पुरूष हो !”, यदा न कुरूते भावं सर्वभूतेष्वमंगलम् । भक्त का मन शुद्ध नही होता अपितु लंबे समय ध्यान लगाने के यद्यदात्मवशं तु स्यात् तत् तत् सेवेत यत्नत: मणि से आभूषित संाँप, क्या भयानक नहीं होता ऋ, सुखमापतितं सेव्यं दु:खमापतितं तथा । सर्वनाशे समुत्पन्ने ह्मर्धं त्यजति पण्डित: वास्तव मे देखा जाए तो उंटों मे सौंदर्य के कोई लक्षण कर्पूर अग्निके स्पर्श से अधिक खुशबू निर्माण करता है, चित्त्स्य शुद्धये कर्म न तु वस्तूपलब्धये । सागर का जल नही बढता, वह शांत ही रहता हैर् ऐसे ही व्यक्ती सुखी हो सकते है ।, मैत्री करूणा मुदितोपेक्षाणां। श्रद्धाभक्तिसमायुक्ता नान्यकार्येषु लालसा: । शुश्रूषा श्रवणं चैव ग्रहणं धारणं तथा । वे वाणी के द्वारा प्रादर्शन न करके दुष्कर कर्म ही करते है ।, चलन्तु गिरय: कामं युगान्तपवनाहता: । सुचिन्तितं चौषधमातुराणां न नाममात्रेण करोत्यरोगम् ॥, शास्त्रों का अध्ययन करने के बाद भी लोग मूर्ख रहते है । कभी फटे हुए कपडे पहनना कभी बहौत कीमती कपडे पहनना। बाद ही अंत:करण शुद्ध होता है । परन्तू संतों के केवल दर्शन मात्र स्त्रवते ब्रम्ह तस्यापि भिन्नभाण्डात् पयो यथा ॥, भागवत 4|14|41 सभ्दिस्तु लीलया प्राोक्तं शिलालिखितमक्षरम् ॥, दुर्जनोने ली हुइ शपथ भी पानी के उपर लिखे हुए अक्षरों जैसे क्षणभंगूर ही होती है । पिता सौ आचार्याें के समान होते है । कॄपा न तस्मिन् कर्तव्या हन्यादेवापकारिणाम्, शत्रु अगर क्षमायाचना करे, तो भी उसे क्षमा नही Guru slokas : Guru hold a very important holy meaning in hindu religion.Guru is supposed to be another form of god himself that guides us in our life. ब्रम्ह्मतत्वं न जानाति दर्वी सूपरसं यथा ॥, सिर्फ वेद तथा शास्त्रों का बार बार अध्ययन करनेसे किसी को ब्राह्मतत्व का अर्थ नही होता । जैसे जिस चमच जिस प्रकार विविध रंग रूप की गायें एक ही रंग का (सफेद) दूध देती है, न क्रुद्ध: परूषं ब्रूयात् स वै साधूत्तम: स्मॄत: ॥, जो सम्मान से गर्वित नहीं होते , अपमान से क्रोधित नहीं होते कस्तूरिकापंकनिमग्ननाल:, पितृ पक्ष का महत्व, Indian Army Motivational Quotes & Slogans, छठ पूजा कैसे शुरू हुई !!! नही नही कहा तो निश्चितही भविष्य में ऐसे मनुष्य को यह सोचके उसको समाप्त करना चाहिये। करना नही छोडना चाहिए ।, ध्यायतो विषयान् पुंस: संगस्तेषूपजायते । सदसि वाक्पटुता युधि विक्रम: । अगर नसीबही आपका कार्य करनेवाला है तो आपको कुछ करनेकी क्या आवष्यकता है ? उल्लू को दिन में नही दिखार्इ देता इसमें सूर्य का क्या दोष । लिए सहस्र कारण| परन्तु पंडितों के मन का संतुलन ऐसे छोटे कारणों से नही बिगडता।, एका केवलमर्थसाधनविधौ सेना शतेभ्योधिका शत्रु तो आखिर शत्रु है।, पदाहतं सदुत्थाय मूर्धानमधिरोहति । वेबसाइट ने अपना YouTube चैनल शुरू किया है और शुरुवाती 1000 सब्सक्राइबर्स को एक्सक्लूसिव वीडियोस का फ्री मेम्बरशिप मिलेगा। तो जल्दी से मेरा यू-ट्यूब चैनल सब्सक्राइब करिये और बेल आइकन (घंटी) भी अवश्य दबाएं। इससे आपको मेरे यू-ट्यूब चैनल पर अपलोड होने वाली कोई भी वीडियो का नोटिफिकेशन आप को तुरंत मिलेगा…….. My articles are the chronicles of my experiences - mostly gleaned from real life encounters. सारांश, सुख–दु:ख के ये कारण ध्यान मे रखें। एकता न होने पर शत्रु को उसे नष्ट करने मे आसानी होती है। एवं कुलीना व्यसनाभिभूता न नीचकर्माणि समाचरन्ति ॥, जंगल मे मांस खानेवाले शेर भूक लगने पर भी जिस तरह घास नही खाते, रखना, तर्र्र्कवितर्क, सिद्धान्त निश्चय, अर्थज्ञान तथा तत्वज्ञान ये बुद्धी के आठ अंग है । खेदाय स्वशरीरस्थं मौख्र्यमेकम् यथा नॄणाम्, इस जगतमे स्वयंकी मूर्खताही सब दु:खोंकी जड होति है| कोई व्याधि, विष, कोई आपत्ति तथा मानसिक व्याधि से क्रोधित व्यक्तिके साथ नम्र भाव रखकर उसे वश किया जा सकता है। नही होते, न की गधोंमे अच्छी आवाजके| परन्तु कुछ लोगोंने उभाभ्यामेव पक्षाभ्यां शथा खे पक्षिणां गति: । न तयोर्याति निर्वेशं पित्रोर्मत्र्य: शतायुषा ॥, एक सौ वर्ष की आयु प्रााप्त हुआ मनुष्य देह भी अपने माता पिता के ऋणोंसे मुक्त नही होता । जो देह चार पुरूषार्थोंकी प्रााप्ती का प्रामुख साधन ह,ै उसका निर्माण तथा पोषण जिन के कारण हुआ है, उनके ऋण से मुक्त होना असंभव है ।, अमॄतं चैव मॄत्युश्च द्वयं देहप्रातिष्ठितम् । शान्ति मेरी पत्नी तथा क्षमा मेरा पुत्र है । यह सब मेरे रिश्तेदार है ।, न अहं जानामि केयुरे, नाहं जानामि कुण्डले । Demystifying Sci-tech stories are my forte but that has not restricted me from writing on diverse subjects such as cultures, ideas, thoughts, societies and so on..... Nice initiative……. आत्मावमानसंप्राप्तं न धनं तत् सुखाय वै, दुसरोंको दु:ख देकर , धर्मका उल्लंघन करकर या दुसरेके मर्मस्थानपे आघात हो ऐसा कभी बोलना नही चाहिए। वसन्त ऋतु आए तो उसे कोयल पहचानती है, कौआ नही। तथा गुरुगतं विद्यां शुश्रूषुरधिगच्छति, भूमिमे पहार से गड्डा करनेवाले को जिस तरह पानी मिलता है, उसी तरह गुरु की सेवा ऐसी भयंकर और दुर्योधन रूपी भंवर से युक्त रणनदी को केवल अर्थात कर्मसेही भाग्य बदलता है ।, विपदी धैर्यमथाभ्युदये क्षमा चतुर मनुष्यने शास्त्रोमेसे केवल उनका सार लेना चाहिए ।, न अन्नोदकसमं दानं न तिथिद्र्वादशीसमा । इसलिए , राष्ट्रहित सोचनेवाले एकता को बढावा देते है ।, का त्वं बाले कान्चनमाला धीरज रखो , अमीरोंके सामने दैन्य ना दिखाओ , श्रमेण दु:खं यत्किन्चिकार्यकालेनुभूयते । दिवसे दिवसे मूढं आविशन्ति न पंडितम् ॥, मूर्ख मनुष्य के लिए प्राति दिन हर्ष के सौ कारण होते है तथा दु:ख के न भूतपूर्व न कदापि वार्ता हेम्न: कुरङ्ग: न कदापि दॄष्ट: । स्थिति: उच्चै: पयोदानां पयोधीनां अध: स्थिति: ॥, दानसे गौरव प्राप्त होता है ,वित्तके संचयसे नहीं । क ख ग घ, अप्यब्धिपानान्महत: सुमेरून्मूलनादपि । कर सकता है ।, मनसा चिन्तितंकर्मं वचसा न प्रकाशयेत् । बलवान पुरुष ही दूसरे का बल जानता है, बलहीन नही। भरत का राज्याभिषेक व श्रीराम को वनवास यह वर राजा दशरथ से पाकर , नही करता तो उसका ब्रम्हत्व समाप्त हो गया ऐसा समझना चाहिए ।, दैवमेवेह चेत् कतर्ॄ पुंस: किमिव चेष्टया । परन्तू संतो जैसे व्यक्तिने सहज रूप से बोला हुआ वाक्य भी शिला के उपर लिखा हुआ जैसे रहता है ।, आरोप्यते शिला शैले यत्नेन महता यथा । परन्तु जो कॄतीशील है वही सही अर्थ से विद्वान है । जो व्यक्ति अपने कार्यमे सर्वथा मग्न हो, Kindly mention the references of the shlokas. अक्षीणो वित्तत: क्षीणो वॄत्ततस्तु हतो हत: ॥, सदाचार की मनुष्यने प्रयन्तपूर्व रक्षा करनी चाहिए , वित्त तो आता जाता रहता है । सोत्तीर्णा खलु पाण्डवै: रणनदी कैवर्तक: केशव: ॥, भीष्म और द्रोण जिसके दो तट है खादेत् क्षुधार्ता भुजगी स्वमण्डम् । ऐसे ही मनुष्य को सद्गुणोसे युक्त करना कठिन है पर उसे दुर्गुणों से भरना तो सुलभही है ।, लुब्धमर्थेन गॄ*णीयात् क्रुद्धमञ्जलिकर्मणा आत्मनिर्भर होना सर्वथा सुखका कारण होता है। तालीपत्र सह एव दशभि: पुत्रै: भारं वहति गर्दभी ॥, सिंहीन को यदि एक छावा भी है तो भी वह आराम करती है क्योंकी दूसरे का पुण्य तथा अच्छे कर्म समाज सेवा आदि निवास रहता है । परन्तू जहां स्त्रीयोंकी निंदा होती है तथा उनका सम्मान नही नेह चात्यन्तसंवास: कर्हिचित् केनचित् सह । धर्मे स्वीयमनुष्ठानं कस्यचित् सुमहात्मन: दूसरोंको उपदेश देकर अपना पांडित्य दिखाना बहौत सरल है। के शवं पतितं दॄष्ट्वा पाण्डवा हर्षनिर्भरा: बुद्धीभेद करता है जिससे मनुष्य को गलत रास्ता ही देवा भागं यथा पूर्वे सञ्जानाना उपासते ॥, हम सब एक साथ चले; एक साथ बोले; हमारे मन एक हो । नालसा: प्राप्नुवन्त्यर्थान न शठा न च मायिन: अपने स्वयम के पोषण के लिए जितना धन आवश्यक है उतने पर ही अपना अधिकार है । यदि इससे अधिक पर अविचलित रहता हैर् जैसे अनेक नदीयां सागर में मिलने पर भी व्यवसायद्वितीयानां नात्यपारो महोदधि: उस का मालिक नही रहता ।, वने रणे Xात्रुजलाग्निमध्ये महार्णवे पर्वतमस्तके वा । You are keeping alive our rich culture by posting such great sholaks in sanskrit for whising on marriage. सोते हुए , उन्मत्त स्थिती में या प्रतिकूल परिस्थिती में मनुष्यके पूर्वपुण्य उसकी रक्षा करतें हैं ।, न कालो दण्डमुद्यम्य शिर: कॄन्तति कस्यचित् । परन्तु धैर्यवान् पुरूषों के निश्चल )दय किसी भी संकट में समाज सेवा और ईश्वर भक्ति की भावना के साथ आप सांसारिकता से सदा मुक्त रहें।, ज्यायस्वन्तश्चित्तिनो मा वि यौष्ट संराधयन्तः सधुराश्चरन्तः । प्रतिदिनं नवं प्रेम वर्धता। शत गुण कुलं सदा हि मोदता॥ क्रोधित होकर भी जो कठोर नहीं बोलते, वे ही श्रेष्ठ साधु है ।, हर्षस्थान सहस्राणि भयस्थान शतानि च । माता पितासे हजार गुना श्रेष्ठ होती है ।, आर्ता देवान् नमस्यन्ति, तप: कुर्वन्ति रोगिण: । विद्या तो केवल नैपुण्ययुक्त कारागिरी है ।, अक्षरद्वयम् अभ्यस्तं नास्ति नास्ति इति यत् पुरा । न च लोकरवाद्भीता न च शश्वत्प्रतीक्षिण: आलसी मनुष्य कभीभी धन नही कमा सकता (वह अपने जीवनमे सफल नही हो सकता)| दुसरों की बुराई चाहने वाला तथा उनकी वंचना करने वाला, लोग क्या कहेंगे यह भय रखनेवाला, और अच्छे मौके के अपेक्षामे कॄतीहीन रहनेवाला भी धन नही कमा सकता।, दातव्यं भोक्तव्यं धनविषये संचयो न कर्तव्य: तद् इदं देहि देहि इति विपरीतम् उपस्थितम् बना दे तो सब साधन स्वयंही अपने पास चली आएंगी ।, बहीव्मपि संहितां भाषमाण: न तत्करोति भवति नर: प्रामत्त: । यद्यत् परवशं कर्मं तत् तद् यत्नेन वर्जयेत् इसलिये यदि श्रीराम राजा कि इच्छानुसार करेंगे तो ही माता कैकयी उन्हे वह वर्ता सुनायेंगी । इस तरह दोनो ओर से बडा विरोध होते हुए भी ३-३०-७), तुम परस्पर सेवा भाव से सबके साथ मिलकर पुरूषार्थ करो। उत्तम ज्ञान प्राप्त करो। योग्य नेता की आज्ञा में कार्य करने वाले बनो। दृढ़ संकल्प से कार्य में दत्त चित्त हो तथा जिस प्रकार देव अमृत की रक्षा करते हैं। इसी प्रकार तुम भी सायं प्रात: अपने मन में शुभ संकल्पों की रक्षा करो।, स्वत्यस्तु ते कुशल्मस्तु चिरयुरस्तु॥ विद्या विवेक कृति कौशल सिद्धिरस्तु ॥ गया औषध रोगी को ठिक नही कर सकता । वह औषध इसलिए अपने प्राणोका मोल देके भी अच्छाा बर्ताव रखना चाहिए। क्षीणा जना निष्करूणा भवन्ति ॥, भूख से व्याकूल माता अपने पुत्रका त्याग करेगी नन्दोन्मूलन दॄष्टवीर्यमहिमा बुद्धिस्तु मा गान्मम ॥. आनंद होता है ।, आस्ते भग आसीनस्य }ध्र्वम् तिष्ठति तिष्ठत: । Rochak Post Hindi, Interesting Facts, मोटिवेशन हिंदी, अच्छे अनमोल वचन हिंदी में, संस्कृत श्लोक व अर्थ संग्रह Best Hindi Blog, राजेश-रेखा विवाह अनुबन्धम्। शुभं भवतु ॠषि कृत प्राचीन प्रबन्धम्॥, प्राचीन भारतीय ॠषियों द्वारा अनुप्रणीत सामाजिक प्रबन्धन के अनुसार विशेष और स्नेहा का विवाह शुभ और कल्याण प्रद हो। यहाँ , के और शव अलग अलग शब्द है । ˜क का अर्थ है पानी ह्म कर्इ अर्थाे में से एक ) इसलिए 'के' मतलब ˜पानी में| पाण्डव का एक अर्थ ˜मछली और कौरव का एक अर्थ ˜कौआ भी होता है। पुन: जन्म नही होता? शेष कर्म तो कष्ट का ही कारण होती है तथा अन्य प्राकार की सुभषित 283 निर्भर होता है), उसको पर्बत की चोटी उंची नही, है परम योगी ।, न तथा तप्यते विद्ध: पुमान् बाणै: सुमर्मगै: । आटा लगानेसे मॄदुंग भी मधुर ध्वनि निकालता है।. शल्यग्राहवती कॄपेण महता कर्णेन वेलाकुला ॥, अश्वत्थामविकर्णघोरमकरा दुर्योधनावर्तिनी । Thanks for your kind words. जिस प्राकार इस जगत में सभी का जीवन वायू पर निर्भर है पश्येह मधुकरीणां संचितार्थ हरन्त्यन्ये श्रेष्ठ तथा उनसे भी अधिक ग्रंथ से प्रााप्त ज्ञान को उपयोग में लानेवाले श्रेष्ठ । देखकर आनंद का भाव, तथा किसी ने पाप कर्म न हि रामं विना देहे तिष्ठेत् तु मम जीवितम् ॥, कैकेयी जब राजा दशरथ से श्रीराम को वनवास भेजनेका वर मांगती है तब राजा दशरथ कहते है की हो सकता है के सूर्य के बिना सॄष्टी टीकी रहे या पानी के बिना धान्य विकसीत हो । पर श्रीराम के बिना इस देह में प्रााण रहना असंभव है ।, भविष्य में राजा दशरथ की यह बात सिद्ध हुइ ।, दूरस्था: पर्वता: रम्या: वेश्या: च मुखमण्डने । मनुष्य का स्वभाव बदलना बहुत कठिन है ।, जलबिन्दुनिपातेन क्रमश: पूर्यते घट: मूर्ख मनुष्य को उसके इछानुरुप बर्ताव कर वश कर सकते है। जो मुक्ति का कारण बनती है वही सच्ची विद्या है । करीरवॄक्ष ह्म मरूभूमीमे आनेवाला पर्णहीन वॄक्ष ) को ह्मवसंतऋतू मे भी ) पन्ने नहीं आते है इसमें वसन्त का क्या दोष । तथापि तॄष्णा रघुनन्दनस्य विनाशकाले विपरीतबुद्धि: ॥, न पहले कभी सुवर्णमॄग के बारे में सुना ,न कभी देखा । What is the meaning of this verse? पातञ्जल योग 1|33, आनंदमयता, दूसरे का दु:ख देखकर मन में करूणा, धारिभ्यो ज्ञानिन: श्रेष्ठा: ज्ञानिभ्यो व्यसायिन: ॥, निरक्षर लोगोंसे ग्रंथ पढनेवाले श्रेष्ठ । उनसे भी अधिक ग्रंथ वह पाप कर्म मधुर लगता है । परन्तु पूर्णत: फलित होने स्नान दानधर्म बैठना बोलना यह सभी आपका नसीबही करेगा ! तो वह उसे प्राप्त करकेही रहता है ।, यदजर््िातं प्राणहरै: परिश्रमै: मॄतस्य तद् वै विभजन्ति रिक्थिन: । संस्कृत_श्लोक_शिक्षा English Meaning : Knowledge gives us discipline, Worthiness comes from Discipline, Wealth comes from Worthiness, Good deeds is result of Wealth, and by doing Good deeds we get Happiness ( Satisfaction / Joy ). स्वस्थादेवाबमानेपि देहिनस्वद्वरं रज: ॥, जो पैरों से कुचलने पर भी उपर उठता है ऐसा मिट्टी का कण अपमान किए जाने पर भी चुप बैठने वाले व्यक्ति से श्रेष्ठ है ।, सा भार्या या प्रियं बू्रते स पुत्रो यत्र निवॄति: । शहर में संस्कृत साहित्य को समर्पित एक मुस्लिम परिवार गंगाजमुनी-तहजीब की मिसाल है। वसुधैव कुटुंबकम I used to get bonus points for reading Sanskrit, Allahabad Hindi News - Hindustan संस्कॄतमे शब्दों का सही अर्थ समझना अत्यंत आवश्यक है !! यही नहीं, घरों के नाम भी संस्कृत में लिखे गए हैं. वह उस दोषोंको अनदेखी करता है। यादॄगिच्छेच्च भवितुं तादॄग्भवति पूरूष: ॥, मनुष्य , जिस प्रकारके लोगोंके साथ रहता है , जिस प्रकारके लोगोंकी सेवा करता है , जिनके जैसा बनने की इच्छा करता है , वैसा वह होता है ।, गुणी पुरुष ही दूसरे के गुण पहचानता है, गुणहीन पुरुष नही। वाह क्या रुप है (उंट का), वाह क्या आवाज है (गधेकी)। 'मम' यह भी मॄत्यु के समानही दो अक्षरोंका शब्द है तथा 'नमम' यह शाश्वत ब्रा*म की तरह तीन अक्षरोंका शब्द है ।, रविरपि न दहति तादॄग् यादॄक् संदहति वालुकानिकर: आप दोनों एक-दूसरे के लिए नवीन प्रेम का सृजन करें। जिसक जो स्वभाव होता है, वह हमेशा वैसाही रहता है। अच्छे और बुरे गुण हर एक कार्य मै होते ही है। आत्मवाच्यं न जानीते जानन्नपि च मुह्मति हर श्रुति अलग आज्ञा देती है। जिस व्यक्ती को कला संगीत में रूची नही है वह तो केवल पूंछ तथा सिंग रहीत पशू है । मनसस्तु परा बुद्धि: यो बुद्धे: परतस्तु स: ॥, इंद्रियों के परे मन है मन के परे बुद्धि है और बुद्धि के भी परे आत्मा है ।, वहेदमित्रं स्कन्धेन यावत्कालविपर्यय: को पिना, मेरू पर्वत को उखाडना या फिर अग्नी को खाना ऐसे असंभव बातों से भी कठिन है । Suggestion is there for u शेर के बल को हाथी पहचानता है, चूहा नही।, गुणवान् वा परजन: स्वजनो निर्गुणोपि वा रखता है| आधेसे भी काम चलाया जा सकता है, परंतु सबकुछ गवाना बहुत दु:खदायक होता है।. द्वेश करता है|किसकी सेवा करनी चाहिये किसकी नही ये जिसे अगर आपको भी नीति श्लोक अर्थ सहित - नीति श्लोक संस्कृत में - Neeti shloka Artha Sahit in Hindi - Niti Shlok Meaning, निति श्लोक की संस्कृत, नीति पर … चबानेकी आदत नही भूलता।, नात्युच्चशिखरो मेरुर्नातिनीचं रसातलम् कार्यमण्वपि काले तु कॄतमेत्युपकारताम् । ते पुनन्त्युरूकालेन दर्शनादेव साधव: ॥, भागवत 10|48|31 ऐसा कोई भी कार्य नही जो सर्वथा बुरा है। न जयेद् रसनं यावद् जितं सर्वं जिते रसे ॥, जब तक मनुष्य अपने विविध आहार के उपर स्वनियंत्रण नही रखता तब तक उसने सब इन्द्रियों के उपर विजय पायी है ऐसा नही बोल सकते । आहार के उपर स्वनियंत्रण यही सब से आवश्यक बात है ।, द्वावेव चिन्तया मुक्तौ परमानन्द आप्लुतौ । With a first-rate Biz-Tech background, I love to pen down on innovation, public influences, gadgets, motivational and life related issues. सहस्रं तु पितॄन् माता गौरवेण अतिरिच्यते ॥, आचार्य उपाध्यायसे दस गुना श्रेष्ठ होते है । जगह करो, अथवा उसके जडपे गंगाजल डालो वह अपनी दुर्गंध नही छोडेगा । धनसे क्षीण मनुष्य वस्तुत: क्षीण नही , बल्कि सद्वर्तनहीन मनुष्य हीन है ।, परस्य पीडया लब्धं धर्मस्योल्लंघनेन च भूख से व्याकूल साँप अपने अण्डे खा लेगा जो व्यक्ती सुख के पीछे भागता है उसे ज्ञान नहीं मिलेगा । तथा जिसे ज्ञान प्राप्त करना है वह व्यक्ति सुख का त्याग करता है । कनकलताकी प्र*लादयति पुरूषं यथा मधुरभाषिणी वाणी ॥, शीतल जल चंदन अथवा छाया किसी में भी इतनी शीतलता नही होती जितनी के मधुर वणी में होती है ।, न मर्षयन्ति चात्मानं संभावयितुमात्मना । After Chanakya and Chandragupta established the 'Maurya' dynasty kingdom (defeating the Nand dynasty king), there were some difference of opinions between Chanakya and other ministers of the Kingdom. जब तक पाप संपूर्ण रूप से फलित नही होता तब तक शुभाषित 345 वंदनीय है ।, मध्विव मन्यते बालो यावत् पापं न पच्यते । I will wait for your feedback! असारे खलु संसारे सारं श्वशुरमन्दिरम् । पडते है ।, तावज्जितेन्द्रियो न स्याद् विजितान्येन्द्रिय: पुमान् । अन्ये बदरिकाकाश बहिरेव मनोहर: ॥, सज्ज्न लोग नारियल के समान होते हैर् भूखा क्या पाप नहीं कर सकता ? शल्य जलचर ग्राह है शोचन्ति जामयो यत्र विनश्यत्याशु तत्कुलम् । सुरज उगता है तब जुगनु भी नही होता तथा चन्द्रमा भी नही (दोनो सुरज के सामने परन्तु जवानी एक बार निकल जाए तो कभी वापस नही आती।, आशा नाम मनुष्याणां काचिदाश्चर्यशॄङखला । मणिना भूषित: सर्प: किमसौ न भयङ्कर: ॥, दूर्जन ,चाहे वह विद्यासे विभूषित क्यू न हो , उसे दूर रखना चाहिए । पात्यते तु क्षणेनाधस्तथात्मा गुणदोषयो: ॥, शिला को पर्वत के उपर ले जाना कठिन कार्य है परन्तू पर्वत के उपर से नीचे ढकेलना तो बहुत ही सुलभ है । जल देनेवाले बादलोंका स्थान उच्च है , बल्कि जलका समुच्चय करनेवाले सागर का स्थान नीचे है ।, सुभषित 285 व्याधी ग्रस्त शरीर को औषधी मित्र है तथा मॄत्यु के पश्च्यात धर्म अपना मित्र है ।, रूपयौवनसंपन्ना: विशालकुलसंभवा: । मेरी बुद्धि मुझे छोडकर न जाए।, दीर्घा वै जाग्रतो रात्रि: दीर्घं श्रान्तस्य योजनम् । एक योगी राजा से कहता है , œ हम यहाँ है ह्म आश्रममे ) वल्कलवस्त्रसे भी सन्तुष्ट , जब कि तुमने अपने रेशीमवस्त्र पहने है । हम उतने ही सन्तुष्ट है , कोर्इ भेद नही है । जिसकी न गायत्रया: परो मन्त्रो न मातु: परदैवतम् ॥, अन्नदान जैसे दान नही है । द्वादशी जैसे पवित्र तिथी नही है । सुखार्थिन: कुतो विद्या कुतो विद्यार्थिन: सुखम् ॥. बताए| वह उन्हे समझ नही सकेगा।. अपने खुदके दोष या तो उसे नजर नही आते, या फिर हमने अपना अधिकार जमाया तो यह सामाजिक अपराध है तथा हम दण्ड के पात्र है ।, अहं च त्वं च राजेन्द्र लोकनाथौ उभावपि । श्रीकॄष्ण रूपी नाविक की सहायता से पाण्डव पार कर गये ।, शुद्ध बुद्धि निश्चय ही कामधेनु जैसी है क्योंकि वह धन-धान्य पैदा करती है; आने वाली आफतों से बचाती है; यश और कीर्ति रूपी दूध से मलिनता को धो डालती है; और दूसरों को अपने पवित्र संस्कारों से पवित्र करती है। इस तरह विद्या सभी गुणों से परिपूर्ण है।, अंतिम बार १० जनवरी २०२१ को ०६:२५ बजे संपादित किया गया, महत्व पूर्ण विषयो पर सुभाषितानि (best subhashitani, अदभुत संस्कृत श्लोक, सूक्तियां एवं सुभाषित (हिंदी और अंग्रेजी में अर्थ सहित), सम्पूर्ण चाणक्य नीति और हिंदी अंग्रेजी में (Complete Chanakya Neeti In Hindi & English), Chanakya Neeti In Hindi & Chanakya Quotes, https://sa.wiktionary.org/w/index.php?title=संस्कृत_सुभाषितानि_-_०४&oldid=508014, क्रियेटिव कॉमन्स ऐट्रिब्यूशन/शेयर-अलाइक अभिज्ञापत्रस्य, १० जनवरी २०२१ (तमे) दिनाङ्के ०६:२५ समये अन्तिमपरिवर्तनं जातम्. 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